अब हाथी भी सीखेंगे हिंदी भाषा , झारखंड में होगी इन हाथियों की ट्रेनिंग

झारखंड के पलामू टाइगर रिज़र्व  लाये गए तीन हाथी अब हिंदी सीखेंगे। ये तीनों हाथी कर्नाटक के बांदीपुर नेशनल पार्क के है जिन्हें पिछले महीने ही झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व में लाया गया है। इन तीनो हाथियों और उनके महावतों को हिंदी सिखाई जा रही है क्योंकि ये तीनो हाथी कन्नड़ भाषी है और वंहा उनके साथ भाषा की दिक्कत आ रही है।यह अपने महावत के कन्नड़ में ही दिए गए आदेशो को समझते है जिस वजह से स्थानीय महावत हाथियों के साथ रह नही पा रहे है। भाषा की आ रही समस्या को देखते हुए ही हाथियों को हिंदी सिखाने का फैसला किया गया है। झारखंड के लातेहार में इन हाथियों को हिंदी भाषा सीखने का इंतजाम किया जा रहा है।
पिछले महीने ही कर्नाटक के बांदीपुर नेशनल पार्क से हाथी कालभैरव, हथनी सीता और एक बच्चा मुरुगेशन को झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व में जंगलो की निगरानी ओर जंगल सफारी के लिए लाया गया है। टाइगर रिजर्व के अधिकारी एम पी सिंह का कहना है कि इन हाथियों के साथ भाषा की दिक्कत आ रही है।।केवल कन्नड़ भाषा जानने की वजह से ये हाथी स्थानीय भाषा मे दिए गए आदेश नही समझ पा रहे है। इसलिए इन्हें और इनके साथ आये महावतों को हिंदी सिखाई जाएगी। स्थानीय महावतों को भी कन्नड़ सिखाई जाएगी ताकि दोनों के बीच भाषायी समस्या को खत्म किया जा सके। उंन्होने उम्मीद जताई कि भाषा की इस समस्या से जल्द ही निपट लिया जाएगा।
कर्नाटक से इन हाथियों के साथ इनके महावत और हाथी को नहलाने और खाने पिलाने सहित देखभाल करने वाला भी आया है। कर्नाटक के दोनों महावत मंजुल को लातेहार के रामप्रसाद ओर योगेन्द्र हिंदी सिखाएंगे और मंजुल से कन्नड़ सीखेंगे। मंजुल कालभैरव के महावत है।सीता और मुरुगेशन के महावत मारी स्थानीय महावत रामप्रसाद और वीरेंद्र को कन्नड़ सिखाएंगे और  इनसे ही मारी हिंदी सीखेंगे। दोनों जगहों के महावत हाथियों से हिंदी और कन्नड़ में बात कर सकेंगे। इस तरह से जंगलात के अधिकारी हाथियों के साथ आ रही भाषायी समस्या को दूर करने की कोशिश करेंगे।
 
उत्तराखंड के वन्य जीव विशेषज्ञ राजेन्द्र अग्रवाल का कहना है कि हाथी शारीरिक हाव भाव और बोलचाल के यानी ध्वनि के आधार पर ही समझता है। इसीलिए अलग अलग स्थानों के हाथियों के साथ यह समस्या आती है कि स्थानीय भाषा और अन्य  स्थानों की भाषा मे बोलचाल और शब्दों की ध्वनि में काफी अंतर होता है जिसकी वजह से हाथी दूसरी जगह जाने पर वंहा की भाषा मे दिए गए निर्देशों को नही समझ पाता है।
Front Page Bureau

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