ब्रज किशोर ज्योतिष संस्थान, प्रताप चौक, सहरसा बिहार के संस्थापक ज्योतिषचार्य पंडित तरुण झा जी ने बताया है की,ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को वट सावित्री का व्रत रखा जाता है, वट सावित्री का व्रत सुहागिन महिलाओं की ओर से रखा जाता है, इस दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं,माना जाता है कि पौराणिक समय में सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लाने के लिए यह व्रत रखा था, अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाला वट सावित्री व्रत 19 मई, शुक्रवार को है,इस दिन ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि है, इस दिन दर्श अमावस्या और शनि जयंती का भी योग बन रहा है, इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं,वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए एक बड़ा व्रत माना जाता है,वट सावित्री व्रत के दिन शोभन योग का निर्माण होने जा रहा है, जो 18 मई को शाम 07 बजकर 37 मिनट से 19 मई को शाम 06 बजकर 16 मिनट तक रहेगा,साथ ही इस दिन शनि जयंती और ज्येष्ठ अमावस्या भी पड़ रही है,वहीं इस बार वट सावित्री व्रत पर ग्रहों की स्थिति भी बेहद खास रहने वाली है क्योंकि इस दिन शनि देव स्वराशि कुंभ में विराजमान रहेंगे,ऐसे में शनि देव की पूजा से शुभ फल की प्राप्ति होगी, इसके साथ इस दिन चंद्रमा गुरु के साथ मेष राशि में होंगे जिससे गजकेसरी योग भी बन रहा है!
वट सावित्री व्रत की कथा:-
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वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ,सावित्री भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है, सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है, सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था, कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी,उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं, अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा,इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि ‘राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी”,सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया,कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान थी, योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे, उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा, सावित्री तपोवन में भटकने लगी, वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था,उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया
सत्यवान अल्पायु थे,वे वेद ज्ञाता थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया, पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी, जिसका फल उन्हें बाद में मिला था!