देश के लिए जान कुर्बान करने वाले 14 शहीदों के गावं में क्यों नही मनेगा 15 अगस्त को आजादी का जश्न, क्यों नाराज है शहीदों के परिजन

       :-72वें स्वतंत्रता दिवस पर विशेष -:
 
हरिद्वार,
आज़ादी की जिस खुली हवा में आज हम सांस ले रहे हैं, वो हमारे पूर्वजों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर हासिल की थी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने हमे आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजो के जुल्मों सितम झेले और यातनाएं सही। तब जाकर हमे आजादी मिली थी। मगर देश मे आज भी स्वतंत्रता सेनानियों के हजारो परिवार ऐसे है, जो सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे है। हरिद्वार में ही एक ऐसा गावं है गाजीवाली जंहा के 14 नौजवान आजादी की जंग में लड़ते हुए देश पर शहीद हो गए थे। मगर आज उनके परिजन बदहाल जीवन जीने को मजबूर है। यही नही आजादी के दीवानों का यह गावं आज सड़क जैसी मूलभूत सुविधा तक के लिए तरस रहा है। सरकारी उपेक्षा से नाराज गाजीवाली के शहीद परिवार के परिजनों ने स्वतंत्रता दिवस के सभी कार्यक्रमो का बहिष्कार करने का एलान किया है।
15 अगस्त को देश स्वतंत्रता की 71वीं  वर्षगांठ मनाने जा रहा है। स्वतंत्रता के 71 साल बाद भी आजादी के आंदोलन में शहीद होने वाले कई परिवार आज बदतर हालात में जी रहे है। ना तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार ने आज तक इन परिवारों की सुध ली। हरिद्वार का गाजीवाली गावं भी उनमे से एक है, जंहा के 14 नौजवानों ने आजादी के संग्राम में अंग्रेजो से लोहा लिया था। ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी थे कुंदन सिंह, जिन्हें लिखने पढ़ने की उम्र में ही देश को आजादी दिलाने का जुनून सवार हो गया था। कुंदन सिंह अपने गावं के अन्य नौजवानों के साथ आजादी की लड़ाई में कूद पड़े और हँसते हँसते देश पर कुर्बान हो गए। कुंदन सिंह की तरह इसी गावं के खुशीराम, चम्पत सिंह, गोकुल सिंह और तुलाराम जैसे 14 नौजवान देश पर शहीद हो गए थे। 
     शहीदों के परिजनों में क्यों है नाराजगी-
हमे आजादी दिलाने और खुशहाल देखने के लिए उन्होंने अपनी जान दे दी। मगर आज उन्ही शहीदों के परिजन बदतर हालात में है। शहीदों के परिजनों में इस बात को लेकर बेहद नाराजगी है कि किसी भी सरकार ने आज तक हम शहीदों के परिवारों की सुध नही ली। कुंदन सिंह की नाती नीलम पाल ने एलान किया है कि गावं में शहीदों के परिजन आजादी के जश्न का बहिष्कार करेंगे और किसी भी कार्यक्रम में शामिल नही होंगे। नीलम पाल की नाराजगी की वजह है सरकार द्वारा की जा रही उनकी उपेक्षा।  नीलम कहती है कि हमारे पूर्वज देश के लिए शहीद हो गए मगर सरकारों ने हमारी कोई सुध नही ली कि हम किस हालात में है और कैसे गुजर बसर कर रहे है। नीलम का कहना है कि गावं के हालात बहुत खराब है। मूलभूत सुविधाओं तक के लिए गावं के लोगो को तरसना पैड रहा है। शिक्षा की कोई व्यबस्था आज तक नही है। प्राइमरी स्कूल के बाद पढ़ाई के लिए 15 किलोमीटर दूर हरिद्वार जाना पड़ता है।
       क्या कहते है शहीदों के परिजन–
अंग्रेजों के जुल्मो सितम सहकर जब 15 अगस्त 1947 को आजादी का सूर्योदय हुआ तो लोगो को उम्मीद थी कि आजाद भारत मे उनके जीवन मे भी अब सूर्योदय होगा। शहीदों के परिजन साल दर साल अपने और अपने इलाके के हालात सुधरने का इंतेजार करते करते थक गए। अब 71 साल बाद शहीदों के परिजनों के सब्र की जब इंतेहा हो गई तो उनके दिल मे आज दर्द उमड़ रहा है। शहीद कुंदन सिंह के बेटे पन्नालाल ने भी अपने दिल का दर्द बयां किया कि क्या ऐसे दिन देखने के लिए ही हमारे पूर्वजों ने देश की खातिर अपनी जान थी। उनका कहना है कि 14 शहीदों के गावं का आलम आज यह है कि गावं में शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली की हालत तो खस्ता है ही गावं में बिना गड्ढों की पक्की सड़क तक नही है। 
      शहीदों के गांव के लोगो को गर्व भी है अपने          पूर्वजों की देश के लिए शहादत पर-
शहीदों के गावं गाजीवाली में सेनानियों के परिजन तो सरकार की उपेक्षा ने नाराज है ही, ज्यादातर स्थानीय ग्रामीण भी गावं की दुर्दशा से नाराज है। बावजूद इसके गावं के लोगो को इस बात पर आज भी गर्व है कि उनके गावं के 14 नौजवानों का भी देश की आजादी में योगदान रहा है। शहीद के परिजन रामपाल सिंह बताते है कि जब भी कोई उनसे कहता है कि आप शहीदों के गावं गाजीवाली के रहने वाले है तो उनका सीना गर्व से फूल जाता है। वह बताते है कि 9 अगस्त 1942 को जब महात्मा गांधी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन की मुहिम शुरू की थी, तब गावं के ये 14 नौजवान गांधी जी के आव्हान पर अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गए थे। आजादी के इन 14 मतवालों ने अंग्रेजो की नाक में दम कर दिया था।।गावं में ही अंग्रेजो ने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक जेल बनाई थी जो आज भी खंडहर हालात में मौजूद है।
गावं गाजीवाली में अंग्रेजो द्वारा बनाई गई जेल।
ये है गाजीवाली के स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीद-
1-   कुंदन सिंह
2-   लल्लू सिंह
3-   खुशीराम
4-   चंपत सिंह
5-   गोकुल सिंह
6-   तुलाराम
7-   पूरण सिंह
8-   मोतीराम
9-   मथुरा 
10-  मुसद्दीलाल
1क-  राम स्वरूप
12-  शुक्ल चंद
13-  शादी राम
14-  सदानंद
    आज भी विकास से दूर है गाजीवाली गावं-
स्थानीय निवासी सतनाम सिंह जब आजादी से पहले के दिनों के किस्सों को याद करते है तो उन्हें बताते हुए खुद पर और अपने गावं पर फक्र होता है। मगर गावं के लोगो की पीड़ा है कि आजादी के आंदोलन के वक्त भी यंहा आने जाने का कोई साधन नही था,सड़कें नही थी, जंगल ही जंगल था आज गावं का थोड़ा बहुत विकास जरूर हुआ है मगर कमोबेश आज भी हालत तब से ज्यादा बेहतर नही है।
आजादी से पहले गाजीवाली गांव शहरों से कटा हुआ होता था। जंगल से घिरे इस गांव की आबादी महज़ 250 लोगों की थी। लेकिन बावजूद इसके यहां के लोगों में देश को आज़ाद कराने का गज़ब का जज़्बा था। स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए भले ही कई सपने देखे होंगे मगर आज उन्ही सेनानियों के परिजनों द्वारा आजादी के जश्न के बहिष्कार का फैसला कई तरह के सवाल खड़े करता है। शहीदों के पैवारो के दिलो में कितनी पीड़ा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले आजादी के 71 साल बाद अपनी ही सरकार के खिलाफ खड़े हो गए हैं। देश आजादी का जश्न मनाएगा और शहीदों के इस गावं के लोग जश्न से दूर रहेंगे।
Front Page Bureau

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