राजनीति का चाणक्य कहा जाता था हेमवती नंदन बहुगुणा को,

उन्हें राजनीती का चाणक्य कहा जाता था.वो क्रांतिकारी था.हिमालय पुत्र के नाम से उनकी पहचान थी, वह अंग्रेज सरकार की नाक में दम करने वाला छात्र था, अंग्रेज सरकार उसके कारनामो से इस कदर परेशांन थी की उसे जिन्दा या मुर्दा पकड़ने पर तब 5 हजार जैसी बड़ी रकम इनाम के तौर पर रखी थी.कुशल वक्ता मगर अहंकार से कोसों दूर , स्वभाव से जिद्दी मगर खांटी सिद्धांतवादी। ऐसे थे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी  हेमवती नंदन बहुगुणा. उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे बहुगुणा भले ही कांग्रेस के नेता थे मगर उनकी सोच समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष थी. हेमवती नंदन बहुगुणा भारतीय राजनीति के पुरोधा रहे हैं। गुलाम हिन्दुस्तान की सबसे बर्बर घटनाओ में से एक जलियावाला बाग़ काण्ड जिस दिन 13 अप्रैल सन 1919  को हुआ था उसके ठीक 12  दिन बाद  उत्तराखंड के पौड़ी जिले के बुढाना गावं में एक ऐसे बालक का जन्म हुआ था जो युवावस्था में ही अंग्रेज सरकार के लिए मुसीबत बन गया था. आज देश उसी हेमवती नंदन बहुगुणा की 99 वीं  जयंती मना रहा है. देश भर आज में उनकी जन्मशती पर विभिन्न आयोजन किये गए।  इसके साथ ही भारत सरकार ने उनकी याद में डाक टिकट जारी किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सरकारी आवास में प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने एक बडे समारोह में ​हेमवती नंदन बहुगुणा की याद में डाक टिकट जारी करते हुए उन्हें भारतीय राजनीति का महान यौद्धा बताया।

बहुगुणा की गिनती भारत के उन राजनेताओं में रही है, जिन्होंने राजसत्ता की अहंकारी और तानाशाही प्रवृति के खिलाफ हमेशा बगावती तेवर अपनाये। वे देश के उन खाँटी नेताओं में शामिल रहे हैं जो सीधे जनता से जुडे रहे। इसीलिए हेमवती नंदन बहुगुणा को धरती पुत्र कहा जाता था। अपने जमाने में वे युवाओं के सबसे लोकप्रिय नेता रहे। राजनीति में नैतिक मूल्यों को उन्होंने हमेशा वरियता दी। सत्ता की खातिर उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।

हेमवती नंदन बहुगुणा ऐसे नेता रहे हैं जिनके प्रशंसक व समर्थक विभिन्न राजनीतिक दलों में आज भी मौजूद हैं।बहुगुणा 1942 में आज़ादी के भारत छोडो आंदोलन से एकाएक चर्चा में आये और एक क्रांतिकारी के रूप में जबरदस्त लोकप्रिय होने लगे। तब अंग्रेज सरकार ने उनकी जिन्दा या मुर्दा पकड़ने पर 5 हजार का इनाम घोषित किया था. इसके बाद वे 1943 को दिल्ली में गिरफ्तार हुए और करीब 2 साल जेल में रहने के बाद रिहा हुए तो फिर से अंग्रेजी सरकार की चूलें हिला दी.स्वतंत्रता आंदोलन में अपने जुझारू तेवरों से कांग्रेस नेता लाला बहादुर शास्त्री उनसे काफी प्रभावित रहे और आज़ादी के बाद उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया गया.

1952  में पहली बार हेमवती नन्दन बहुगुणा उत्तरप्रदेश की पहली विधानसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए. अपनी तेज तर्रार कार्यशैली से बहुगुणा 1957 में राष्ट्रीय कांग्रेस समिति में शामिल किये गए. इसके बाद वे राष्ट्रीय महासचिव जैसे बड़े महत्वपूर्ण पद तक पंहुच गए.इस दौरान बहुगुणा उत्तरप्रदेश सरकार में कई मंत्रालयों में रहे.1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के इमरजेंसी लगाने के फैसले और संजय गाँधी की गुंडागर्दी वाली हरकतों से बहुगुणा काफी दुखी थे और 1975  में इस्तीफा दे दिया.मगर इंदिरा ने उन्हें फिर से पार्टी में शामिल कर लिया। हेमवती नंदन बहुगुणा 1974 में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उनके मुख्यमंत्री रहते इंदिरा गांधी ने देश में 25 जून 1974 को इमरजेंसी  लागू कर दी थी। इंदिरा गांधी के इस कदम का उन्होंने विरोध किया और 1976 में इंदिरा गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाकर नारायण दत्त तिवारी को उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। इंदिरा के इस अपमान के बाद बहुगुणा ख़ामोशी ओढ़ कर चुपचाप हालातों का आकलन करते। 1977 में बहुगुणा ने कांग्रेस से अलग होकर जगजीवन राम के साथ मिलकर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी नाम की पार्टी बनाई और आम चुनाव में 28  सीटें जीती. जिनमे से 4 सीटें केवल तब उत्तरप्रदेश का हिस्सा रहे उत्तराखंड इलाके की थी,  उन्होंने जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लडा था और केंद्र में जनता पार्टी की सरकार में वे पैट्रोलियम मंत्री बने। बाद में बहुगुणा ने अपनी पार्टी का विलय जनता दल में कर दिया था,  अहम् और दोहरी सदस्य्ता के मुद्दे पर जनता पार्टी बिखर गयी तो बहुगुणा फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए.
 
सन 1980 में इंदिरा गांधी केंद्र में फिर से सत्ता में आई तब बहुगुणा कांग्रेस के मुख्य महासचिव थे। इंदिरा भी बहुगुणा के कांग्रेस छोड़कर जाने और एमरजेंसी में खिलाफत करने की वजह से बहुगुणा से अंदर से खार खाये हुए थी. बहुगुणा से बदला लेने की कसक के चलते ही 1980  में सत्ता में वापसी होने पर इंदिरा ने उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं दी.। वे 1980 में कांग्रेस के टिकट पर उत्तराखंड के पौडी गढवाल संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गए थे। उन्होंने संजय गांधी के मतभेद के चलते 1981 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था, साथ ही उन्होंने सांसदी से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया था। वे समाजवादी चिंतक आचार्य नरेंद्र देव के बाद देश के दूसरे राजनेता थे, जिन्होंने पार्टी छोडने के साथ-साथ सांसदी भी छोडी। पूरे देश की नजर हेमवती नंदन बहुगुणा पर टिकी थी। सन् 1982 में उन्होंने पौडी गढवाल संसदीय क्षेत्र से उपचुनाव लडा और इस ऐतिहासिक चुनाव में बहुगुणा ने फिर जीत हासिल की, जबकि उन्हें उपचुनाव हराने के लिए इंदिरा गांधी ने पूरी ताकत झौंक दी थी। पहली बार देश के किसी प्रधानमंत्री ने उपचुनाव में जमकर चुनाव प्रचार किया था और 36 चुनावी रैलियां की थी।  तब केंद्र की कांग्रेस सरकार और उत्तरप्रदेश की विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के सभी मंत्री कई दिनों तक पौडी गढवाल संसदीय क्षेत्र में डेरा डाले रहे। परंतु केंद्र व उत्तरप्रदेश की कांग्रेस सरकारें उनको हराने में कामयाब नही रही, जबकि पौडी गढवाल संसदीय क्षेत्र का उपचुनाव दो बार स्थगित किया गया। बहुगुणा को चुनाव हराने की सभी साजिशें रची गई थी। जातिवाद तक का सहारा लिया गया। हेमवती नंदन बहुगुणा को हराने के लिए कांग्रेस ने गढवाल को ब्राह्मणवाद और ठाकुरवाद की राजनीति में बांट दिया था। बहुगुणा के खिलाफ कांग्रेस के नेता चंद्रमोहन सिंह नेगी को चुनाव मैदान में उतारा गया। राजनीति विश्लेषक डाॅ अवनीत कुमार घिल्डियाल बताते हैं कि देहरादून के परेड ग्राउंड में उपचुनाव के दौरान हेमवती नंदन बहुगुणा की ऐतिहासिक जनसभा हुई थी। जिसमें बहुगुणा को सुनने के लिए इतनी ज्यादा भीड जमा हुई, उतनी भीड आज तक देश के किसी भी राजनेता को सुनने के लिए नहीं हुई। उपचुनाव की इस ऐतिहासिक जीत के बाद बहुगुणा देश की राजनीति में छा गए थे।

 1984 में बहुगुणा इलाहाबाद से चुनाव में खड़े हुए तो राजीव गाँधी ने उनके मुकाबले में अमिताभ बच्चन को खड़ा कर दिया।  बहुगुणा को हारने के लिए कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंक रखी उस चुनाव में अमिताभ के खिलाफ इलाहाबाद में ये नारे गली गली में गूंज रहे थे.
हेमवती नंदन इलाहाबाद का चंदन.

दम नहीं है पंजे में, लंबू फंसा शिकंजे में.

सरल नहीं संसद में आना, मारो ठुमका गाओ गाना.
  मगर जबरदस्त लोकप्रियता के बाद भी अमिताभ ने बहुगुणा को पौने दो लाख से ज्यादा वोटों से हरा दिया. इस हार से बहुगुणा काफी निराश हुए और लोकदल में शामिल हो गए जंहा उनकी देवीलाल और शरद यादव से पटरी नहीं बैठी. दोनों ने ही बहुगुणा का पार्टी में भारी विरोध किया, तो बहुगुणा ने राजनीती से ही सन्यास ले लिया.  इस तरह हेमवती नंदन बहुगुणा भारतीय राजनीति के जुझारू नेताओं में शुमार रहे। वे अल्पसंख्यकों पिछडी जातियों, वामपंथियों और दलितों के साथ ब्राह्मणों में भी बहुत लोकप्रिय थे। 1974 में देश में इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर जोरदार छेडा हुआ था। तब बहुगुणा उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनकी जनसभाओं में भारी भीड उमड रही थी। इंदिरा गांधी के बाद कांग्रेस में वे सत्ता के दूसरे केंद्र बनते जा रहे थे। तब रेडियो मास्को ने अपने एक बुलेटिन में हेमवती नंदन बहुगुणा की बढती लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें देश का भावी प्रधानमंत्री तक बता दिया था। इंदिरा गांधी बहुगुणा की बढती लोकप्रियता से घबरा गई और उन्होंने 25 जून 1975 को आपातकाल लगाने के बाद सबसे पहले बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद से हटाया।

उत्तराखंड के पौडी गढवाल जिले के गांव बुगाणी में रेवती नंदन बहुगुणा के परिवार में 25 अप्रैल 1919 को हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म हुआ था। बताते हैं कि उनके पिता ने उनकी जन्मपत्री एक ज्योतिषी को दिखाई। उस ज्योतिषी ने उनकी जन्मपत्री में जबरदस्त राजयोग देखा तो उनकी शादी अपनी बेटी से छात्र जीवन में ही कर दी थी।
12वीं की पढाई पौडी गढवाल से पास करने के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा इलाहाबाद विश्व विद्यालय उच्च शिक्षा पाने के लिए चले गए, जहां वे छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे। वहीं हेमवती नंदन बहुगुणा ने दूसरी शादी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहासकार प्रोफेसर रामप्रकाश त्रिपाठी की बेटी कमला बहुगुणा से की। इलाहाबाद में छात्र राजनीति करते हुए बहुगुणा कांग्रेस के दिग्गज नेताओं पंडित जवाहर लाल नेहरू, गोविन्द बल्लभ पंत के संपर्क में आए। और वे आजादी के आंदोलन में भी कई बार जेल रहे। वे गांधीवादी थे। आजीवन सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लडे। आरएसएस की दोहरी सदस्यता को लेकर जनता पार्टी में उनके मतभेद हो गए। और संघ को लेकर जनता पार्टी का विभाजन करने से उन्होंने कोई परहेज नहीं किया।
अब भी बहुगुणा की दूसरी और तीसरी पीढ़ी राजनीती में सक्रीय है. बहुगुणा की बड़ी बेटी रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस छोड़ भाजपा में आकर आज उत्तरप्रदेश सरकार में मंत्री है. उनके बेटे विजय बहुगुणा हाई कोर्ट के जज से इस्तीफा देकर राजनीती में आये. उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बने फिर कुछ कांग्रेसी विधायकों को बगावत कराकर 2017 में भाजपा में शामिल हुए. विजय बहुगुणा के बेटे हेमवती ननदान बहुगुणा के पोते सौरभ बहुगुणा सितारगंज से भाजपा के विधायक है. हेमवती नंदन बहुगुणा का परिवार आज भी उत्तराखंड और देश की राजनीती में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. पहली बार किसि सरकार को उनका जन्मदिन मनाने और उन पर डाक टिकट जारी करने की याद आयी. इस बहाने बहुगुणा के देश की राजनीती में उनके महत्वपूर्ण योगदान को आज याद किया जा रहा है.

Front Page Bureau

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