सात्विक साधना कर्त्तापन के भाव को मिटाता है ः डॉ पण्ड्या

कर्तापन की भावना को दूर करती है सात्विक साधना : डॉ. पांड्या

हरिद्वार 2 अक्टूबर।

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि सात्विक साधना साधक के कर्त्तापन के भाव और अहंकार को मिटाता है। गायत्री साधना से साधक के अंदर सतोगुण का विकास होता है। साधक जब भगवान में समर्पित होकर जप अनुष्ठान करता है, तब भगवान साधक के जीवन को स्वर्गीय चेतना से महका देता है।

 

डॉ पण्ड्या देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में आयोजित नवरात्र साधना के अंतर्गत चल रहे सत्संग शृंखला के सातवें दिन भक्त, भक्ति और भगवान की महिमा के परिप्रेक्ष्य में साधकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि लोगों में पनप रहे मिथ्या अहंकार मानवता के लिए विनाशकारी है। सात्विक साधना साधक के अंदर के मिथ्या अहंकार के भाव को नष्ट करता है और साधक को सतोगुणी कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। ऐसी साधना साधक को सरलता प्रदान करती है।

 

गीता मर्मज्ञ डॉ पण्ड्या ने कहा कि शरीर में सत्, चित्त की अभिवृद्धि होने से शरीरचर्या की गतिविधियों में काफी बदलाव आ जाता है। इन्द्रियों के भोगों में भटकने की गति मंद हो जाती है और तरह-तरह के स्वादों के पदार्थ खाने के लिए मन ललचाते रहना, बार-बार खाने की इच्छा होना, भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार न करना, सात्विक पदार्थों में अरुचि जैसी बुरी आदतें धीरे धीरे कम होने लगती हंै। जबकि हलके सुपाच्य सरस और सात्विक भोजनों से उसे तृप्ति मिलती है।

 

उन्होंने कहा कि मानसिक क्षेत्र में सद्गुणों की वृद्धि के कारण दोष दुर्गुण कम होने लगते हैं तथा सद्गुण बढ़ने लगते है। इस मानसिक कायाकल्प का परिणाम यह होता है कि दैनिक जीवन में प्रायः आने वाले अनेक दुःखों का सहज समाधान होने लगता है। इसके साथ ही उन्होंने साधकों के साधनात्मक तथा विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया।

 

इससे पूर्व संगीत विभाग के भाइयों ने सितार, बांसुरी आदि प्राचीन वाद्ययंत्रों के सुमधुर धुन से साधकों के मन को झंकृत कर दिया। तो वहीं हमें भक्ति दो मां, हमें शक्ति दो मां……. भक्ति गीत प्रस्तुत कर युगगायकों ने साधकों को प्रफुल्लित किया। इस अवसर पर देसंविवि एवं शांतिकुंज परिवार सहित देश विदेश से आये साधकगण उपस्थित रहे।

 

Front Page Bureau

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