देश के बड़े आध्यात्मिक गुरु मौनी बाबा के अस्थि अवशेष गंगा में विसर्जित

हरिद्वार 

भले ही देश के कई बड़े राजनेताओ व् हस्तियों के गुरु रहे मौनी बाबा की तपस्थली मध्यप्रदेश में उज्जैन रही हो जंहा उन्होंने मौनी तीर्थ की स्थापना की थी, मगर उनके अस्थि अवशेष को आज  उनकी जन्मस्थली कनखल में पौराणिक सतीघाट पर ही गंगा में विसर्जन के लिए लाया गया था, मौनी बाबा के अस्थि अवशेष आज वैदिक विधि-विधान से आज उनके शिष्य और भांजे डाॅ संत सुमन भाई ’मानस भूषण’ ने सतीघाट कनखल में गंगा में विसर्जित किए। मौनी बाबा को देशभर से आए श्रद्धालुओं ने नम आंखों से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उज्जैन से मौनी बाबा का अस्थि कलश उनके भांजे डाॅ संत सुमन भाई, उनकी पत्नी अर्चना शर्मा, अन्य परिजन हिमांशु कौशिक, वर्षा कौशिक, गौरी शर्मा, वैभव शर्मा, तृप्ति शर्मा, पंडित हिमांशु जुयाल आदि लेकर आए थे। गंगा में अस्थि विसर्जन की धार्मिक प्रक्रिया पंडित जितेन्द्र शास्त्री ने वैदिक रीति-रिवाज के साथ सम्पन्न कराई। पूरा गंगा तट श्री श्री मौनी बाबा अमर रहे के नारों से गूंज उठा।


गंगा में अस्थिविसर्जन से पूर्व श्री श्री मौनी बाबा का अस्थि कलश कनखल के रामलीला भवन में श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा गया। जहां श्रद्धालुओं ने उन्हें पुष्पांजलि-भावांजलि अर्पित की।
श्री श्री मौनी बाबा के परम शिष्य और उत्तराधिकारी संत डाॅ सुमन भाई मानस भूषण ने कहा कि वे उनके आध्यात्मिक गुरू तो थे ही, साथ ही उन्होंने उन्हें अभिभावक के रूप में सदा सच्ची राह दिखाई। वे अलौकिक सिद्धियों के ज्ञाता थे।
उत्तरप्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक डाॅ संजय तरडे ने भी श्री श्री मौनी बाबा का स्मरण करते हुए कहा कि वे महायोगी थे। उनके विचार हर युग में प्रासंगिक रहेंगे। वे भक्तों का कष्ट हरने वाले एक सिद्ध साधक थे। वे हमेशा हमारे बीच रहेंगे।
श्री गंगासभा के अध्यक्ष पंडित पुरूषोत्तम शर्मा ’गांधीवादी’ ने कहा कि श्री श्री मौनी बाबा एक उच्च कोटि के साधक थे। उनके अध्यात्म के बताए मार्ग पर उनके शिष्य संत सुमन भाई चल रहे हैं।
हरिद्वार जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष अशोक त्रिपाठी ने कहा कि श्री श्री मौनी बाबा कनखल के मूल निवासी थे। कनखल उनकी कर्मभूमि थी और उज्जैन उनकी आध्यात्मिक साधना का केंद्र रहा। उनकी साधना ने उन्हें जैविक शरीर से ऊपर उठा दिया था। नगर पालिका हरिद्वार के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप चैधरी ने कहा कि श्री श्री मौनी बाबा सौम्यता, विनम्रता और शालीनता की जीवंत प्रतिमा थे। कार्यक्रम के संयोजक पंडित राजेन्द्र कुमार त्रिपाठी ’राजू’ ने कहा कि श्री श्री मौनी बाबा ने अपनी उच्च कोटि की साधना से कनखल का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया.


श्री रामलीला कमेटी कनखल के अध्यक्ष पंडित शैलेन्द्र त्रिपाठी ने श्री श्री मौनी बाबा का भावपूर्ण स्मरण करते हुए उन्हें एक महामानव बताया। इस अवसर पर नगर निगम हरिद्वार के मेयर मनोज गर्ग, पूर्व सभासद अशोक शर्मा, प्रद्युम्न अग्रवाल, गजेन्द्र कौशिक, राजकुमार त्रिपाठी, प्रेम त्रिपाठी, कुमारी स्वरात्मिका मिश्रा, शिक्षाविद् ईश्वर दयाल विश्नोई, शांतनु मिश्रा, सुभाष चंद्र भाटिया, पंडित पुनीत त्रिपाठी, अनिल गुप्ता, सुभाष, विजय वर्मा, पंडित नितिन माणा, मनोज खन्ना, प्रफुल्ल ध्यानी, मृदुल कौशिक आदि ने श्रद्धांजलि अर्पित की।
आज से 72 साल पहले श्री श्री मौनी बाबा ने मौनव्रत साधना राजस्थान के जयपुर के नजदीक गलताजी तीर्थ में शुरू की थी। 1958 में उन्होने क्षिप्रा नदी के तट पर भी ’’मौन तीर्थ’’ की स्थापना की। जीवन पर्यत उनकी मौन साधना चलती रही। 1909 में उनका कनखल में जन्म हुआ था। कनखल के मानव कल्याण आश्रम व मिश्रा गार्डन में उन्होंने चातुर्मास किया।पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह सहित कई बड़े राजनेता और उद्योगपति मौनी बाबा के भक्तों में शुमार हे, मौनी बाबा शुरू से ही फक्कड़ जीवन जीने के आदि रहे थे. कनखल में रहते हुए भी बाबा भौतिक सुखसुविधाओं से दूर मस्त मौला सी जिंदगी जीते थे. उनके पास शुरू से ही अलौकिक दृस्टि रही है. जवानी के दिनों में ही मौनी बाबा अचानक ही एक दिन कनखल से गायब हो गे. कुछ दिनों बाद राजस्थान के एक गावँ में किसी बाबा के चमत्कारों की चर्चा जब पुरे देश में होने लगी तो पता चला की ये तो हरद्वार के मौनी बाबा थे. बस उसके बाद से ही उनके भक्तों की संख्या बढती गयी और उनके भक्तो में देश की कई नामचीन हस्तिया शुमार हो गयी. उनके भांजे सुमन भी किशोरावस्था से धार्मिक प्रवर्ति के रहे है और बाद में मौनी बाबा ने उन्हें हिओ अपना शिष्य बनाया. सुमन भाई की पहचान भी एक बड़े कथावाचक के रूप में है.

Front Page Bureau

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