मेरे-तेरे में उलझे अधिकारी, आम आदमी पर भारी पड़ सकती है अधिकारियों की लीपापोती
हरिद्वार। अधिकारियों और नेताओं की हीलाहवाली आम आदमी पर भारी पड़ सकती है। बड़े खतरे को देखकर भी अधिकारी और जनप्रतिनिधि उसे अनदेखा कर रहे हैं।
यहां बात कर रहे हैं कनखल स्थित छतरी वाले कुंए की, जो करीब पांच दिन पूर्व धंसना शुरू हो गया था। जिस कारण से जहां कुंए के साथ आसपास की सड़कों में दरारें पड़ चुकी हैं। साथ ही कुंए से सटे भवन में भी दरारें पड़नी शुरू हो गयी हैं। जिस प्रकार से कुंए की स्थिति है उसे देखते हुए वह कभी भी धंस सकता है। जिससे आसपास के भवनों के भी धराशायी होने की संभावना है।
कुएं के धंसने के संबंध में प्रसिद्ध चिकित्सक वैद्य दीपक कुमार ने सबसे पहले स्थानीय पार्षद नीतिन माणा को स्थिति से अवगत कराया, किन्तु यहां भी आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिलां। इस संबंध में स्थानीय विधायक मदन कौशिक का भी स्थिति से अवगत कराया गया, किन्तु नतीजा ढाक के तीन पात वाला रहा। जबकि कुंए का धंसाव लगातार जारी है और गड्ढ़े का आकार भी लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसके बाद वैद्य दीपक ने इसकी शिकायत एसआरडीए में की। उसके बाद नगर निगम, एसआरडीए व ग्रामीण अभियंत्रण इकाई से अधिकारी व कर्मचारी लगातार आए, किन्तु नतीजा कुछ नहीं निकला। कुछ अधिकारियों ने बजट का रोना रोया तो कुछ ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर का मसला बताकर अपने कार्य की इतिश्री कर ली। आरईएस के अधिकारी जो मौका मुआयना करने आए उन्होंने स्वंय स्वीकारा की स्थिति गंभीर है और कभी भी बड़ा हासदा हो सकता है, किन्तु साथ ही कहा कि हमारे पास तो बजट ही नहीं है। यह काम तो नगर निगम का है। जबकि उनका कहना था कि बजट तो एचआरडीए के पास है, वह अच्छी तरह से काम कर सकता है। सभी ने अपने-अपने फंडे बताकर मामले पर लीपापोती की और चले गए। सबसे मजेदार बात तो यह है कि जिस स्थान पर यह कुंआं है वह मेयर के घर से चंद कदमों की दूरी पर है और प्रतिदिन मेयर का कुंए के सामने से गुजरना होता है, बावजूद इसके इस मामले पर संज्ञान नहीं लिया जा रहा है। जबकि कुंए के आसपास के भवनों व दुकानों को गंभीर खतरा बना हुआ है। कुंए की जो स्थिति बनी हुई है, उसको देखते हुए कुंआ कभी भी जमींदोज हो सकता है। यदि ऐसा होता है तो बड़ा हादसा होने से इंकार नहीं किया जा सकता।