मां मंशा देवी ट्रस्ट विवाद, सरस्वती देवी की वसीयत ही गैरकानूनीः शर्मा
हरिद्वार। हरिद्वार के सामाजिक कार्यकर्ता अजय शर्मा ने मां मंशा देवी ट्रस्ट विवाद पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहाकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक कोई भी मंदिर का संचालक, पुजारी व अन्य सदस्य या ट्रस्टी सम्पत्ति के स्वामी नहीं हो सकते हैं। उन्होंने कहाकि जिस सरस्वती देवी की वसीयत का हवाला दिया जा रहा है वह गलत है। उन्होंने कहाकि सरस्वती देवी को वसीयत करने का ही अधिकार नहीं था, कारण की जिस सम्पत्ति की वसीयत की गयी है वह सरस्वती देवी की नहीं बल्कि वन विभाग की सम्पत्ति है और दूसरे की सम्पत्ति की वसीयत का किसी को कोई अधिकार नहीं है। जो सरस्वती देवी ने वसीयत की है वह भी गैरकानूनी है। उन्होंने कहा कि बार-बार मंशा देवी को निजी सम्पत्ति बताया जा रहा है, जबकि सरकारी भूमि पर निर्माण के लिए केन्द्र सरकार, वन विभाग व पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति लेनी पड़ती है। बावजूद इसके मंदिर में वन विभाग द्वारा आबंटित भूमि से कहीं अधिक पर अवैध निर्माण किया जा रहा है। साथ ही राजस्व अभिलेखों में कहीं भी मंशा देवी का निजी सम्पत्ति में नहीं दर्शाया गया है।
अजय शर्मा ने कहाकि कोरोना काल में कथित मंशा देवी ट्रस्ट की ओर से लोगों को और सरकार को राहत सामग्री व धन दिया गया। जबकि न्यायालय ने यह आदेश पारित किया हुआ था कि मंशा देवी मंदिर के खाते में से होने वाले प्रत्येक लेनदेन का हिसाब देना होगा और उसके लिए अनुमति लेनी होगी, जो कि ऐसा नहीं किया गया। उन्होंने कहाकि जिस ट्रस्ट का हवाला दिया जा रहा है उसका कोई वर्षों से अस्तित्व ही नहीं है। उन्होंने 11 वर्षों से हो रही न्यायालय के आदेशों की अवहेलना के संबंध में याचिकाकर्ताओं पर भी सवालिया निशान लगाते हुए कहाकि यदि प्रशासन द्वारा न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं करवाया जा रहा था उन्हें इसके खिलाफ न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए था। उन्होंने नए ट्रस्ट पर हो रहे हल्ले पर कहा कि वासु सिंह व उनके पिता ठाकुर सिंह को निशाना बनाया जा रहा है। जबकि 1972 में बने टस्ट्र में ठाकुर सिंह के पिता ट्रस्टी थे। उन्होंने सरकार पर भी सवाल करते हुए कहाकि यदि सरकार भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश की बात करती है तो उसे 1972 से अब तक का मां मंशा देवी मंदिर का स्पेशल ऑडिट कराना चाहिए। उन्होंने कहाकि मंदिर से लोगों की भावना जुड़ी हैं। मंदिर में इस प्रकार की अनियमितताओं से लोगों की भावना आहत होती हैं। ऐसे में सरकार को मामले में संज्ञान लेते हुए कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। उन्होंने कहाकि सबसे बड़ा अपराध तो इस मामले में यह है कि जब उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में वित्त नियंत्रण के अधिकार जिलाधिकारी को देने के आदेश दिए हैं तो वे अधिकार आज तक क्यों नहीं लिए गए। साथ ही अपने आदेश में न्यायालय ने एसएसपी हरिद्वार को निर्देश दिए थे कि वे मंशा देवी में 24 घंटे एक शिकयती रजिस्ट्रर रखेंगे। यदि कोई शिकायत आती है तो उसका 24 घंटे में निस्तारण कराएंगे। यदि मामला गंभीर है और 24 घंटे में निस्तारण नहीं होता है तो उस पर कानूनी कार्यवाही करेंगे। उन्होंने कहाकि जो संस्था रजिस्टर्ड ही नहीं है उसका अध्यक्ष लिखना भी गैरकानूनी है। सरकार और प्रशासन को इस पर संज्ञान लेना चाहिए।